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माता-पिता की डाँट मे होता है दुलार ।

social welfare
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माता-पिता ये दो एेसे शब्द है जिनके बिना एक मनुष्य का जीवन व्यर्थ होता है । माता-पिता का स्थान हमारे जीवन मे सर्वोपरि होता है । हमारा जीवन एक प्रकार का सिक्का है और हमारे माता-पिता सिक्के रूपी हमारे जीवन के दो पहलू है , ठीक जिस प्रकार एक सिक्के को प्रयोग मे लाने के लिए उसके दोनो पहलुओं का होना आवश्यक होता है , ठीक उसी प्रकार एक सही व श्रेष्ठ जीवन व्यतीत करने के लिए माता-पिता दोनो का होना आवश्यक होता है। हमारे माता-पिता हमारे जीवन की सफलता की वह सीढ़ी होते है जिसके सहारे से हम दुनिया भर की सफलताओ को हासिल कर सकते है । समाज की एेसी मान्यता है कि आजकल के समय मे हर कोई एक दूसरे का बुरा करने को तैयार रहता है , लेकिन जहाँ तक मेरा मानना है कि एकमात्र माता-पिता ही एेसे है जो कभी भी अपनी संतान के प्रति गलत बात का विचार भी नही कर सकते है । माता-पिता दोनो ही अपनी संतान के प्रति चिंतित रहते है । माता-पिता दोनो ही अपनी संतान के प्रति स्नेह का व्यवहार रखते है । खासतौर पर यदि बात माँ की करे तो माँ का लगाव अपनी संतान के प्रति कुछ ज्यादा ही होता है और आखिर हो भी क्यो न क्योंकि वह एकमात्र माँ ही होती है जोकि हर रिश्ते मे चाहे वह पिता का हो या दादा का सबसे नौ महीने बड़ी होती है । एक सफल व्यक्ति का जीवन बिना माँ कि दुलार व पिता के ज्ञान के अपूर्ण होता है । किन्तु यदि भूतकाल की तुलना वर्तमान काल से करे तो वर्तमान समय की संतान अपने माता-पिता की इस दुलार भरी डाँट को अपना अपमान करना समझते है । जबकि भूतकाल मे संतान द्वारा माता-पिता की डाँट को दुलार समझा जाता था । समय जैसे जैसे बीतता जा रहा है वैसे वैसे संतान के हद्रय मे माता-पिता के प्रति प्रेम आदर व स्नेह का भंडार कम होता जा रहा है । छोटी सी बात पर माता-पिता के कुछ कह देने पर अपना अपमान समझना व्यर्थ की बात है जब्कि संतान को ये समझना चाहिए कि अपनी माता-पिता की जिस डाँट को वे अपना अपमान मानते है वह अपमान नही बल्कि वह उनके माता-पिता के मन मे उनकी चिंता है , उनका दुलार है । माता-पिता अपनी संतान के लिए हरसंभव प्रयास करते है जिससे कि उनकी संतान को किसी भी प्रकार की कोई कठिनाई का सामना न करना पड़े । माता-पिता अपनी संतान की हर इच्छा पूरी करने की चाह रखते है जिससे कि उनकी संतान को किसी वस्तु से वंचित न रहना पडे । वह हमारी समस्त सुख सुविधाओं को पूरा करने के लिए स्वयं की समस्त इच्छाओ को समाप्त कर देते है । इस बात मे कोई दो राय नही है कि हमारे जीवन मे हमारे माता-पिता का स्थान कोई भी नही ले सकता है और न ही कोई हमारे माता-पिता की तरह हमारे लिए त्याग व बलिदान कर सकता है । प्रत्येक संतान का यह कर्तव्य होता है कि वह अपने माता-पिता को सम्मान करे व उनकी डाँट मे अपना अपमान नही बल्कि अपना दुलार खोजने की कोशिश करे ।

अमन सिंह (सोशल एक्टिविस्ट) बरेली

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