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भारतीय संस्कृति का परिचालक है दीपावली पर्व ।
मित्रों,हम सभी भली-भांति जानते हैं कि त्यौहार मानव-जीवन का एक अभिन्न अंग हैं ,तभी तो विश्व का कोई ऐसा देश हीं हो जहाँ कोई त्यौहार न मनाया जाता हो |हमारे देश भारत में तो त्योहारों की भरमार है और हो भी क्यों न ? त्योहार ही तो हैं जो मानव की आंतरिक एवं बाह्य दोनों तरह की शुद्धि सहज ही करवा देतें हैं, प्रेम का संदेश प्रसारित करते हैं तथा मन की शान्ति को पुनःस्थापित कर कर्मशीलता को सक्रिय किया करते हैं |यहाँ तक कि “विश्व-बन्धुत्त्व” की नींव को मजबूत करने में भी त्योहारों का योगदान अत्यंत उल्लेखनीय है
स्मरणीय है कि हमारे त्यौहार हमारी भावी पीढ़ी में संस्कारों की नींव रखने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया करते हैं |इतना ही नहीं अपितु इनके साथ जुड़े व्रत एवं उपवास भी ईश्वर-आराधना का एक उल्लेखनीय घटक हैं |
भारत के सबसे महत्त्वपूर्ण त्योहारों में से एक “दीपावली” है।
दीपावली मनाते समय हमारा हृदय निर्मल, मन प्रसन्न, चित्त शांत, शरीर स्वस्थ एवं अहंकार…‘शून्य’ हो –ऐसी ही अनुनय विनय है भगवान् श्री राम के चरण-कमलों में | इस पावन-पर्व को मनाने के पीछे एक अत्यंत गौरवमय इतिहास है |कहते हैं कि त्रेता युग में अयोध्या के राजा; राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र जिन्हें संसार “मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ” के नाम से जानता है,जब पिता की वचन-पूर्ति के लिए चौदह वर्ष का वनवास पूरा करके अपनी पत्नी सीता जी एवं अनुज लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे तो नगर वासियों ने उनके स्वागत के लिए, अपनी खुशी प्रदर्शित करने के लिए तथा अमावस्या की रात्रि को भी उजाले से भरने के लिए घी के दीपक जलाये थे |इसके अतिरिक्त, वनवास के मध्य ही लंका का राजा रावण श्री राम की भार्या सीता जी का हरण करके उन्हें लंका ले गया था और तब हनुमान, अंगद, सुग्रीव,जामवंत एवं विशाल वानर सेना के सहयोग से समुद्र पर सेतु-निर्माण कर ,लंका पर आक्रमण करके उन्होंने रावण जैसे आततायी का वध कर धर्म की स्थापना की थी तथा सम्पूर्ण मानव जाति को यह संदेश दिया कि “आतंक चाहे कितना भी सिर उठाने की कोशिश करे तो भी उसका अंत निश्चित है |” और “बुराई पर अच्छाई सदा भारी हुआ करती है |”इस स्मृति में हर वर्ष दशहरा मनाया जाता है जो “विजय दशमी” के नाम से भी विख्यात है और दशहरे के लगभग बीस दिन बाद ही दीपावली आती है |
इस पावन इतिहास के अतिरिक्त जैन धर्म के अनुयायिओं का मत है कि दीपावली के ही दिन महावीर स्वामी जी को निर्वाण मिला था |सिक्ख धर्म को मनानेवाले कहते हैं कि इसी दिन उनके छठे गुरु श्री हर गोविन्द सिंह जी को जेल से रिहा किया गया
अन्त मे मै यही कहना चाहता हूँ कि हम दीपावली का परम-पावन त्यौहार खूब उत्साह से मनाकर अपनी संस्कृति को बनाये रखने में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं लेकिन ऐसे सुंदर अवसरों पर यह चर्चा करना अक्सर भूल जाया करते हैं कि कैसे भगवान् श्री राम ने अपने जीवन में संघर्षों का बहादुरी से सामना किया और सत्य एवं धर्म के मार्ग पर चलने के लिए जीवन के सब सुखों को दाँव पर लगा दिया | सच मानिये त्यौहार के माध्यम से यदि हम आपसी कलह को छोड़कर, अपने जीवन में एक भी दिव्य गुण को विकसित कर ; उसे निरंतर पोषित करते रहने का उत्साह बनाये रख सकें, तभी हम सच्चे अर्थों में त्यौहार मनाते हैं |
अमन सिंह (सोशल एक्टिविस्ट) बरेली
मो. 8265876348
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