Menu
blogid : 24235 postid : 1206140

गुरू का महत्व

social welfare
social welfare
  • 41 Posts
  • 4 Comments

वैसे तो परमेश्वर हर जगह विराजमान होते है। चाहे वह सजीव हो या निर्जीव सभी मे परमेश्वर का वास होता है। हर प्रत्येक स्थान पर परमेश्वर की उपस्थिति का अनुभव कर सकते है। परमेश्वर के अनेको रूप होते है , बस सोचने वाली बात यह है कि आप परमेश्वर के किस रूप को समझ सके। परमेश्वर के एक मानवीय स्वरूप गुरू भी होते है। गुरू ज्ञान का भंडार होते हैं। प्रायः सही व गलत की पहचान गुरू के माध्यम से ही संभव होती है। जिस प्रकार हमारे शरीर के लिए भोजन महत्वपूर्ण है ठीक उसी प्रकार हमारे अंधकारी जीवन को प्रकाश की ओर लाने के लिए गुरू का होना भी महत्वपूर्ण है। गुरू शब्द का तो अर्थ ही होता है ‘अंधकार को दूर करने वाला’। जिस प्रकार पिता व पुत्र का रिश्ता होता है ठीक उसी प्रकार गुरू व शिष्य का रिश्ता भी होता है। गुरू और शिष्य का रिश्ता एक एेसा अटूट रिश्ता होता है जिसमे एक शिष्य अपना सम्पूर्ण जीवन अपने गुरू के प्रति समर्पित कर देता है। जीवन के सार व जीवन के महत्व के बताने वाले गुरू ही होते है। पौराणिक काल से ही गुरू ज्ञान का प्रसार निरंतर कर रहे है। वैसे तो हमारे जीवन के प्रथम गुरू हमारे माता पिता ही होते है। जो हमारा पालन पोषण करते है , हमे चलना व बोलना आदि सिखाते है। वास्तव में गुरू की महिमा का बखान करना संभव नहीं है। गुरू की महिमा ठीक परमेश्वर के समान है – गुरूब्रहमा गुरुविष्ण्रुः गुरूर्द्वेवो महेश्वरः गुरूः साक्षात् परब्रहम तस्मै श्री गुरूवे नमः शास्त्रो मे गुरू के पद को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। बात चाहे पौराणिक काल की करे या आधुनिक काल की गुरू के प्रति शिष्य का आदर भाव बिल्कुल भी नही बदला है। एक व्यक्ति के सफल भविष्य निर्माण हेतु अक गुरू के मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। गुरू के ज्ञान की प्राप्ति के बिना जीवन का समस्त ज्ञान अपूर्ण है। इस बात मे कोई भी दो राय नही है कि , यदि पृथ्वी पर परमेश्वर का कोई मानवीय स्वरूप है, तो वह गुरू ही है।

अमन सिंह (सोशल एक्टिविस्ट ) बरेली

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh