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सच्चा मित्र मिलना हमारा सौभाग्य है I ऊपरी मित्रता निभाने वाले, हमारे सुख में हमारा साथ देने वाले मित्र तो बहुत मिल जाते हैं किन्तु सच्चे मित्र तो कुछ ही होते हैं जो जीवन कि हर परिस्थिति में हमारा साथ निभाते हैं I मित्रों से मन की बात कहकर मन हल्का किया जा सकता है, अन्यथा एकाकीपन अभिशाप कि भांति हमें सताता है I सच्ची मित्रता पानी और मछली जैसी होती है जो एक-दूसरे के दुख में दुखी होते हैंI
विपत्ति के समय साथ देने वाला ही सच्चा मित्र होता है I सच्चे मित्र संकट के समय आगे खड़े रहते हैं I सच्चे मित्र का चुनाव करने मैं सतर्कता बरतनी चाहिए और विवेक से काम लेना चाहिए I जो मित्र के दुख को बड़ा समझे, अवगुणों को हमारे सामने प्रकट कर उन्हें दूर करने मैं सहायता करे, हमें सही मार्ग दिखाए, प्रेरणा दे, पीठ पीछे अहित न करे और मन में कुटिलता न रखे वही सच्चा मित्र होता है I इतने गुणों के परिपूर्ण मित्र का मिलना वास्तव में खजाना पा लेने के सामान है I
मित्र के बिना जीवन अधूरा होता है । मित्र जीवन के रोगों की औषधि होती है, इसलिए मित्रता का बहुत महत्व है । हर प्राणी घर से बाहर मित्र की तलाश करता है ।
मित्र जीवन का वह साथी है जो हर बुराई से हमें बचाता है । हमें भलाई की ओर बढ़ाने के लिए साधन जुटाता है । पतन से बचाकर उत्थान के पथ पर लाता है, वह मित्र है । धर्म ग्रंथों में ऐसे ही मित्रों के गुण गाये गये है, अर्जुन-कृष्ण की मित्रता, श्रीकृष्ण-सुदामा कि मित्रता । श्रीराम और सुग्रीव की मित्रता एक पवन सम्बन्ध की सूचक है ।
श्रीकृष्ण ने आपत्ति में पड़े अर्जुन की हर समय सहायता की । श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता लोक प्रसिद्ध है । सुदामा गरीब ब्राह्मण था और प्रभु श्रीकृष्ण राजा थे तो भी श्रीकृष्ण जी ने मित्रता का फर्ज निभाया और सुदामा की मदद की । जीवन का सहारा, दुःख का साथी मित्र बनाते समय लोग बुद्धिमानी से काम नहीं लेते हैं
कहाँ जाता है कि – विपत्ति रूपी कसौटी पर कसा जाने वाला व्यक्ति ही सच्चा मित्र होता है। संस्कृत में कहावत है कि – ” राजदरबारेश्च श्मशाने यो तिष्ठति स बांधव ” अर्थात राजदरबार और श्मशान में साथ रहने वाला ही सच्चा मित्र कहलाता है। यहाँ राजदरबार सुख का और श्मशान दुख का प्रतीक है। अतः सुख दुःख में साथ रहने वाला ही सच्चा मित्र कहलाता है । सच्चा मित्र अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर अपने मित्र को बुराई की राह पर चलने से बचाता है। वह न तो कभी अपने मित्र को कभी भटकने देता है और न ही कभी रास्ता भूलने देता है। वह गिरते हुए मित्र का हाथ थामकर उसे गिरने से बचाता है। परंतु एक अनमोल रत्न की भाँति सच्चे मित्र भी बहुत कम मिलते हैं। हमे ईश्वर से यही प्रार्थना करनी चाहिए कि वह हमे स्वार्थी मित्रो से बचाए और सच्चे मित्रों से मिलाएँ ।
अमन सिंह. (सोशल एक्टिविस्ट)
पुराना शहर, बरेली (उत्तर प्रदेश)
मो.8265876348
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